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== बड़े काम की जैविक खाद ==

 

'shri yashwant singh founder of  NEW INDIRA TECHNICAL INSTITUTE

खेती


'''भा'''रत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है । यह एक दुखद पहलू है कि हमारे यहां कुछ वर्षो से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वकों का अंधाधुंध व अनियंत्रित प्रयोग किया जा रहा है, जिसके कारण मृदा स्वास्थ्य और मृदा में उपलब्ध लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में भारी ह्रास हुआ है । रासायनिक उर्वरकों के अत्याधिक प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति में कमी तो आई ही है, साथ ही उसके अन्य दुष्प्रभाव जैसे मृदा, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण आदि भी सामने आने प्रांरभ हो गये हैं । मृदा को स्वस्थ बनाए रखने, लक्षित उत्पादन प्राप्त करने के लिए, उत्पादन लागत कम करने हेतु व पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि रासायनिक उर्वरकों जैसे कीमती निवेश के प्रयोग को एक हद तक कम करके जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।

 

 == जैविक खादों का मृदा उर्वरता और फसल उत्पादन में महत्व ==

     जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है, जिससे लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और मृदा काफी

उपजाऊ बनी रहती है ।  

   जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान कराते हैं, जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों के द्वारा पौधों को 

मिलते हैं जिससे पौधों स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है ।

  रासायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते, टिकाऊ तथा बनाने में आसान होते हैं । इनके प्रयोग से मृदा में ह्यूमस की 

बढ़ोतरी होती है व मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है ।

● पौध वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश तथा काफी मात्रा में गौण पोषक तत्वों की पूर्ति 

जैविक खादों के प्रयोग से ही हो जाती है ।

  कीटों, बीमारियों तथा खरपतवारों का नियंत्रण काफी हद तक फसल चक्र, कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं, प्रतिरोध किस्मों और जैव उत्पादों द्वारा ही कर लिया जाता है ।

● जैविक खादें सड़ने पर कार्बनिक अम्ल देती हैं जो भूमि के अघुलनशील तत्वों को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर देती हैं, जिससे मदा का पी-एच मान 7 से कम हो जाता है । अतः इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है । यह तत्व फसल उत्पादन में आवश्यक है ।

  इन खादों के प्रयोग से पोषक तत्व पौधों को काफी समय तक मिलते हैं । यह खादें अपना अवशिष्ट गुण मृदा में छोड़ती हैं । अतः यह एक फसल में इन खादों के प्रयोग से दूसरी फसल को लाभ मिलता है । इससे मृदा उर्वरता का संतुलन ठीक रहता है ।

 

                                '''जैव उर्वरकों से लाभ'''

 ● 300 रूपये के यूरिया से जितना लाभ मिलता है उतना ही लाभ मात्र 70 रुपये खर्च करके जैब उर्वरकों से प्राप्त किया जा सकता है

 ● इनके प्रयोग से बीजों का अंकुरण शीघ्र एवं जड़ों का विकास अच्छा होता है ।

 ● जैव उर्वरक पौधों की वृद्धि में सहायक पोषक तत्वों, विटामिन्स व हारमोन्स आदि भी प्रदान करते हैं ।

 ● मृदा में लाभदायक जीवाणु की संख्या में वृद्धि एवं भूमि की संरचना में सुधार कर उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं ।

 ● इनके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की बचत होती है तथा फसल उत्पादन बढ़ता है साथ ही आर्थिक लाभ भी अधिक मिलता है ।

● जैव उर्वरक उपचारित अन्न, सब्जी, फलों आदि उत्पादों का स्वाद रासायनिक उर्वरक की तुलना में प्राकृतिक रूप से उत्तम होता है

● जैव उर्वरक उपचारित पौधों में रोगों से लड़ने की शक्ति अधिक होती है ।

● सभी जैव उर्वरक पर्यावरण के मित्र हैं । इनके अधिक प्रयोग से किसी प्रकार की हानि नहीं होती है ।

 

                        '''जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियां एवं सुझाव'''

 ● कल्चर का प्रयोग पैकेट में छपी प्रयोग की अंतिम तिथि से पूर्व करें ।

 ● कल्चर पैकेटों का भंडारण ठंडी एवं सुरक्षित जगह पर करें तथा उन्हें सूर्य की सीधी रोशनी से बचायें ।

 ● फफूंदनाशक, कीटनाशक तथा रासायनिक उर्वरकों के साथ न तो इसका भंडारण करें और न उनके साथ मिलाकर प्रयोग करें ।

 ● राइजोबियम जैव उर्वरक का प्रयोग पैकेट पर लिखी विशिष्ट फसल में ही करें ।

 ● जैव उर्वरकों के घोल का बीजों पर लेप करते समय उनके छिलकों को नुकसान न हो ।

 ● फफूंदनाशक तथा कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के साथ जैव उर्वरकों की दो गुनी मात्रा का प्रयोग करें ।

 

== जैविक खादों के प्रकार ==

 जैविक खादों में फार्म यार्ड खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नैडप की खाद इसके अलावा मूंगफली, केक, मछली की खाद, महुआ केक इत्यादि प्रमुख रूप से हैं ।

 

== वर्मी कम्पोस्ट ==

वर्मी कम्पोस्ट में महत्वपूर्ण भूमिका केंचुओं की होती है । एक विशेष प्रकार के केंचुए की प्रजाति के द्वारा कार्बनिक / जीवांश पदार्थो को विघटित करके /  सड़ाकर यह खाद तैयार की जाती है । जिसे वर्मी कम्पोस्ट खाद कहते हैं ।

== वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि ==

छायाकार ऊंचे स्थान पर जमीन की सतह से थोड़ा ऊपर मिट्टी डालकर 2 मी.× 2 मी. ×1 मी. क्रमशः लंबाई, चौड़ाई और गहराई का आवश्यकतानुसार गड्ढा बना लें तथा गड्ढे में सबसे नीचे ईट या पत्थर की 11 सें.मी. परत बनाइए फिर 20 सें.मी. मौरंग या बालू की दूसरी सतह लगाइये । इसके ऊपर 15 सें.मी. मिट्टी की ऊंची तह लगाकर पानी का हलका छिड़काव करके मिट्टी को नम बनायें । इसके बाद सड़ा गोबर डालकर एक कि.ग्रा. प्रति गड्ढे की दर से केंचुए छोड़ दें फिर इसके ऊपर 5 से 10 सें.मी. घरेलू कचरा जैसे- फल व सब्जियों के छिलके, पुआव, भूसा, मक्का व जल कुंभी, पेड़ की पत्तियां आदि को बिछा दें । 20 दिन तक आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें । इसके बाद प्रति सप्ताह दो बार 5-10 सें.मी. सड़ने योग्य कूड़े कचरे की तह लगाते रहें, जब तक कि सारा गड्ढा भर न जायें । प्रत्येक दिन पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए । 5-7 सप्ताह बाद वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है । उसके बाद खाद निकाल कर छाया में ढेर लगाकर सुखा दें ।

 

== कम्पोस्ट खाद ==

कम्पोस्ट खाद उस खाद को कहते हैं जिसमें फसलों के अवशेष, घास इत्यादि को जानवर से प्राप्त कचरा व गोबर को एक साथ एक निर्धारित गड्ढे में सड़ाकर बनाई जाती है । इसके लिए 10 फिट × 5  फिट × 4 फिट लंबाई, चौड़ाई व गहराई का गड्ढा बनाकर उसकी चुनाई अंदर से ईट द्वारा कर दी जाती है । इसके बाद फसलों के अवशेष, सड़ा भूसा, पुआल व घास एवं पशुओं से प्राप्त गोबर को एक के बाद एक तल के रूप में लगाकर गड्ढा भर लिया जाता है । गड्ढा भर जाने के बाद मिट्टी से ढक दिया जाता है । इस प्रकार ६ माह में खाद सड़कर तैयार हो जाती है ।

 

== हरी खाद की फसलों की उत्पादन क्षमता ==

हरी खाद की विभिन्न फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि तथा कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है ।

 

== हरी खाद़ ==

इसमें ढैंचा, सनई, उड़द, मूंग इत्यादि के पौधों को हरी अवस्था में खेत में पलटकर सड़ा दिया जाता है, जिससे मृदा को जैविक खाद प्राप्त होती है । खरीफ मौसम शुरू होने पर खेत में पलेवा करके ढैंचा व सनई की बुआई करनी चाहिए । ध्यान रहे बुआई करते समय यदि खेत की उर्वरा शक्ति कम हो तो रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए तथा फसल जमाव के बाद कम नमी की अवस्था में सिंचाई करते रहना चाहिए । बुआई के लिए ढैंचा 60-70 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा सनई 60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज का प्रयोग करना चाहिए । जब फसल बुआई के 40-50 दिन के अवस्था की हो जाये उस समय पाटा लगाकर फसल को गिराकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए । यदि ट्रैक्टर से पलटाई करनी है तो हैरो से जुताई करके सनई, ढैंचे को सड़ाकर मिला चाहिए ।

 

== फर्म यार्ड खाद ==

पालतू जानवरों द्वारा प्राप्त गोबर, मल-मूत्र से तैयार खाद को फार्म यार्ड या घूरे की खाद कहते हैं । कृषकों द्वारा जानवरों से प्राप्त गोबर व मल-मूत्र का ठीक ढंग से न सड़ने के कारण खाद काफी खराब होकर सूख जाती है जिससे तत्वों की मात्रा काफी कम हो जाती है । ऐसी स्थिति में पूर्व में निर्धारित तथा गहरे गड्ढे से प्राप्त गोबर कचरा और मूत्र इत्यादि को एक तह के रूप में गड्ढे में डालना चाहिए । जब एक तह लग जाये तो उसके बाद मिट्टी की हल्की परत से ढक देना चाहिए । इसके बाद दूसरी तह गोबर की डालनी चाहिए । इस प्रकार गड्ढा भर जाने पर हल्की मिट्टी से ढक देना चाहिए । गड्ढे में कम नमी के अवस्था में पानी का छिड़काव अवश्य करना चाहिए, जिससे गोबर सड़ने में आसानी रहे । इस प्रकार यह खाद तैयार हो जाने के बाद फसल बुआई के पूर्व खेत तैयार करते समय फसल के अनुसार मिट्टी में मिला देना चाहिए ।

 

== खली की खाद ==

 महुआ, नीम, मूंगफली, तिल इत्यादि से तेल निकालने के बाद जो अवशेष प्राप्त होता है उसको खली कहते हैं । इसका प्रयोग फसलों में करने से काफी मात्रा में तत्वों के प्राप्त होने के साथ ही साथ मृदा में पनपने वाले हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करते हैं । फसल की आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग करना चाहिए ।

 

'''मवेशियों की संख्या के अनुसार गड्ढे का आकार'''

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|-

|'''मवेशियों की संख्या'''  ||'''लंबाई मीटर में''' ||'''चौड़ाई मीटर में''' ||'''गहराई मीटर में'''

|-

|2-5   ||6.5 ||1.0 ||1.0

|-

|6-10  ||8.0 ||1.2 ||1.0

|-

|11-20  ||10.0 ||1.4 || 1.0

|-

|20 से अधिक   ||10.0 ||1.5 ||1.0

|}

 

'''हरी खाद की फसलों की उत्पादन क्षमता'''

{| border="1" cellpadding="2"

|-

|'''फसल का नाम'''  ||'''हरे पदार्थ की मात्रा टन/हैक्टर''' ||'''नाइट्रोजन का प्रतिशत''' ||'''प्राप्त नाइट्रोजन कि.ग्रा/हैक्टर'''

|-

|सनई   ||20-30 ||0.43 ||86-129

|-

|ढैंचा  ||20-25 ||0.42 ||84-105

|-

|उड़द ||10-12 ||0.41 || 41-49

|-

|मूंग   ||8-10 ||0.48 ||38-39

|-

|ग्वार   ||20-25 ||0.34 ||68-85

|-

|लोबिया  ||15-18 ||0.49 ||74-88

|-

|कुल्थी   ||8-10 ||0.33 ||26-33

|-

|नील   ||8-10 || 0.78 ||62-78

|}

 

== जीवाणु खाद ==

 जीवाणु खाद मृदा में मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवों का वैज्ञानिक तरीकों से चुनाव कर अनुसंधान प्रयोगशालाओं में तैयारी की जाती है । ये जीवाणु फसलों की पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा कर उनकी वृद्धि बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाते हैं । साथ ही मृदा में मौजूद फास्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराते हैं । तो वहीं कुछ मात्रा में गौण तत्वों जैसे-जिंक, तांबा, सल्फर, लोहा, बोरान, कोबाल्ट व मोलिबिडिनम इत्यादि पौधों को प्रदान कराते हैं । पाया गया है कि यह पादप वृद्धि करने वाले हारमोन्स, प्रोटीन, विटामिन एवं अमीनों अम्ल का उत्पादन करते हैं । साथ ही मृदा में पनप रही रोग जनक फफूंदी नष्ट कर लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ाते हैं । यह सूक्ष्म जीवाणु खेती में बचे हुए कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ाकर मृदा में कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ाकर मृदा में कार्बनिक यौगिक की उचित मात्रा बनाए रखते हैं । इनके प्रयोग से मृदा की जल धारण शक्ति, बफर शक्ति व उर्वराशक्ति बढ़ती है जिससे फसलोत्पादन बढ़ता है । प्रत्येक मौसम में प्रति फसल लगभग 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर का उत्पादन करते हैं तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु प्रति हैक्टर लगभग 30-40 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति फसल उपलब्ध कराते हैं । इन जीवाणुओं के प्रयोग से लगभग 15-30 प्रतिशत फसलोत्पादन बढ़ता है और उत्पाद की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती है ।

जीवाण खाद में मौजूद जीवाणुओं की शुद्धता एवं उनकी एक निश्चित मात्रा ही उसकी सफलता का माप दंड है । अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि वे जीवाणु खाद कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों एवं सरकार द्वारा स्थापित कृषि केंद्रों से ही खरीदें । लगातार किये गये प्रयोगों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गेहूं की फसल के लिये 10 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद के साथ ऐजोटोबेक्टर व ऐजोस्पिरिलम जीवाणु को मिलाकर प्रयोग करने से लगभग उतना ही उत्पादन होता है जितना 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर प्रयोग करने से होता है ।

 

== जैव उर्वरक ==

 ऐसे जीवित सूक्ष्म जीवाणुओं का कोयला, पीट अथवा लिग्नाइट के चूर्ण में मिश्रण है पीट अथवा लिग्नाइट के चूर्ण में मिश्रण है जो कि वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को अवशोषित कर भूमि में स्थापित करते हैं तथा अघुलनशील मृदा फास्फेट तथा अन्य तत्वों को घुलनशील कर पौधों को उपल्बध कराते हैं ।

 

== जैव उर्वरकों के प्रकार ==

'''राइजोबियम कल्चर-''' यह एक नम चारकोल व जीवाणु का मिश्रण है जिसके प्रति एक-एक भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं । यह खाद केवल दलहनी फसलों में दिया जाता है । रोइजोबियम खाद में बीज उपचार करने पर यह बीज के साथ चिपक जाता है । बीज अंकुरण पर यह जीवाणु जड़ की मूल रोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रंथियों का निर्माण करते हैं । पौधों की जड़ों से अधिक ग्रंथियों के होने पर फसल की पैदावार बढ़ती है । इसके प्रयोग से 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की बचत होती है तथा फसल उपज में 10-15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी पायी गयी है । अलग-अलग दलहनी फसल के लिए अलग-अलग राइजोबियम कल्चर बाजार में उपलब्ध होते हैं ।

'''एजेटोबैक्टर-''' यह जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है, जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके पौधों को उपलब्ध कराते हैं । इसके एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं । यह जीवाणु खाद दलहनी फसल को छोड़कर सभी फसलों में उपयोग की जा सकती है । इसके प्रयोग से 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की बचत होती है तथा 10-15 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि होती है ।

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'''जैविक व हरी खादों में औसत पोषक तत्व प्रतिशत'''

{| border="1" cellpadding="2"

|-

|'''जैविक खाद'''  || '''पोषक तत्व (प्रतिशत)'''

|-

|  ||'''नाइट्रोजन''' ||'''फास्फोरस''' ||'''पोटाश'''

|-

|फार्मयार्ड खाद  ||0.80 ||0.41 ||0.74

|-

|कम्पोस्ट खाद   ||1.24 ||1.92 ||1.07

|-

|वर्मी कम्पोस्ट  ||1.60 ||2.20 ||0.67

|-

|धान पुआल की खाद  ||1.59 ||1.34 ||1.37

|-

|गेहूं भूसा की खाद  ||2.90 ||2.05 ||0.90

|-

|प्रेसमड   ||2.73 ||1.81 ||1.31

|-

|जलकुंभी  ||2.0 ||1.0 ||2.30

|-

|मुर्गी खाद  ||2.87 ||2.93 ||2.35

|-

|'''हरी खाद'''  || || || || || ||

|-

|सनई   ||0.43 ||0.12 ||0.5

|-

|ढैंचा  ||0.5 ||0.10 ||0.50

|-

|बिनौला खली  ||3.9 ||1.8 ||1.6

|-

|महुवा केक  ||2.5 ||0.8 ||1.8

|-

|नीम केक  ||5.2 ||1.0 ||1.4

|-

|मूंगफली की खली  ||7.4 ||1.5 ||1.3

|-

|साफ्लावर केक  ||7.9 ||2.2 ||1.9

|-

|तिल केक  ||6.2  || 2.0  ||2.2

|}

 

 '''जैविक व हरी खादों में औसत पोषक तत्व प्रतिशत'''

 '''जैविक खाद'''                    '''पोषक तत्व (प्रतिशत)'''  

                         '''नाइट्रोजन'''              '''फास्फोरस'''              '''पोटाश'''

 फार्मयार्ड खाद                   0.80               0.41               0.74

 कम्पोस्ट खाद                   1.24               1.92               1.07

 वर्मी कम्पोस्ट                   1.60               2.20               0.67

 धान पुआल की खाद              1.59               1.34               1.37

 गेहूं भूसा की खाद                2.90               2.05               0.90

 प्रेसमड                        2.73               1.81               1.31

 जलकुंभी                       2.0                1.0                2.30

 मुर्गी खाद                      2.87               2.93               2.35

 '''हरी खाद'''

 सनई                          0.43               0.12               0.5

 ढैंचा                           0.5                0.10               0.50

 बिनौला खली                    3.9                1.8                1.6

 महुवा केक                      2.5                0.8                1.8

 नीम केक                       5.2                1.0                1.4

 मूंगफली की खली                 7.4                1.5                1.3

 साफ्लावर केक                   7.9                2.2                1.9

 तिल केक                       6.2                2.0                2.2

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 '''जीवाणु'''                         '''फसल जिसमें प्रयोग होते हैं'''        

 रोइजोबियम (सहजीवी)            सभी दलहनी फसलों के लिए लेकिन प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग मात्रा : एक पैकेट

                               (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीज उपचारित करने के लिए ।

 एजोटोबेक्टर (स्वतंत्र जीवी)         गेहूं, बाजरा, जौ, कपास, आलू, गोभी, प्याज, टमाटर, बैंगन, भिंडी, सरसों आदि ।

                                मात्रा : एक पैकेट (200 ग्राम) प्रति एकड़ उपचारित करने के लिए । 

 एजोस्पिरिलम (सहबंधी)           अनाज वाली फसलें, ज्वार, बाजरा, गेहूं, जौ, मक्का, गन्ना आदि । मात्रा : एक पैकेट

                                (200 ग्राम) प्रति एकड़ उपचारित करने के लिए । 

 नील हरित शैवाल                  धान की फसल । मात्रा : 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पानी भरे खेत में छिड़काव के लिए । 

 माइकोराइजा                      पौधशाला में तैयार होने वाली, बागवानी, फूल वाली फसलों के साथ गन्ना तथा अन्य सभी

                                फसलों के लिए । मात्रा : 10-12 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर ।

 माइब्रफोपफास                     सभी फसलों के लिए । मात्रा :  एक पैकेट (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीज उपचारित करने  

                                के लिए । 

'''नील हरित शैवाल-''' ये शैवाल मिट्टी के सदृश्य सूखी पपड़ी के टुकड़ों के रूप में होते हैं । यह धान की फसल के लिए जिनमें कि पानी भरा रहता है लाभकारी है । ये सूक्ष्म जीवाणु 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (पोषक तत्वों के रूप में) प्रति हैक्टर उपलब्ध कराने में तथा 10-15 प्रतिशत फसल की पैदावार बढ़ाने में सक्षम होते हैं । इनके प्रयोग से लगभग 30 प्रतिशत तक रसायनिक उर्वरकों की बचत की जा सकती है ।

 

'''फासफेडिका कल्चर-''' फासफेडिका जीवाणु खाद, स्वतंत्र जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप में उत्पाद है । जब हम खेत में उपरोक्त कल्चर का प्रयोग करते हैं तो जमीन में पड़े हुए अघुलनशील फास्फोरस जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था में बदल दिया जाता है तथा इसका प्रयोग सभी फसलों में किया जाता है । फासफेडिका कल्चर के प्रयोग से फसलों में 10-12 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि पायी गयी है । इसके प्रयोग करने से 20-25 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति है कि बचत संभव है । जड़ों का विकास अधिक होता है जिससे पौधा स्वस्थ होता है ।

 

'''एजोस्पाइरिलम कल्चर-''' यह जीवाणु खाद मृदा में पौधों के जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नमचूर्ण उत्पाद है । जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं । यह जीवाण खाद खरीफ के मौसम में धान, मोटे अनाज तथा गन्ने की फसल के लिए विशेष उपयोगी है । इसके प्रयोग से फसलोत्पादन में 10-12 प्रतिशत वृद्धि होती है तथा 15-20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन की बचत होती है ।

 '''नोट-''' इस प्रकार किसान भाई जैविक खादों व उर्वरकों का प्रयोग दलहनी, तलहनी, खाद्यान्न एवं सब्जी फसलों में करके 

 उत्पादन लागत को कम करते हुए गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेकर अपनी आमदनी प्रति इकाई क्षेत्रफल बढ़ा सकते हैं तथा पर्यावरण को भी

 सुरक्षित रख सकते हैं ।

---== बड़े काम की जैविक खाद ==

 

'''डा. एल. के. इदनानी'''

वरिष्ठ वैज्ञानिक, सस्य विज्ञान संभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली 110012

खेती

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की पत्रिका

अंक: 2, मई 2008 , वैशाख-ज्येष्ठ

 

'''भा'''रत की अर्थव्यवस्था का एक बड़ा भाग कृषि उत्पादन पर निर्भर करती है । यह एक दुखद पहलू है कि हमारे यहां कुछ वर्षो से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वकों का अंधाधुंध व अनियंत्रित प्रयोग किया जा रहा है, जिसके कारण मृदा स्वास्थ्य और मृदा में उपलब्ध लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में भारी ह्रास हुआ है । रासायनिक उर्वरकों के अत्याधिक प्रयोग से भूमि की उपजाऊ शक्ति में कमी तो आई ही है, साथ ही उसके अन्य दुष्प्रभाव जैसे मृदा, जल तथा पर्यावरण प्रदूषण आदि भी सामने आने प्रांरभ हो गये हैं । मृदा को स्वस्थ बनाए रखने, लक्षित उत्पादन प्राप्त करने के लिए, उत्पादन लागत कम करने हेतु व पर्यावरण और स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है कि रासायनिक उर्वरकों जैसे कीमती निवेश के प्रयोग को एक हद तक कम करके जैविक खादों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।

 

 == जैविक खादों का मृदा उर्वरता और फसल उत्पादन में महत्व ==

     जैविक खादों के प्रयोग से मृदा का जैविक स्तर बढ़ता है, जिससे लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है और मृदा काफी

उपजाऊ बनी रहती है ।  

   जैविक खाद पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक खनिज पदार्थ प्रदान कराते हैं, जो मृदा में मौजूद सूक्ष्म जीवों के द्वारा पौधों को 

मिलते हैं जिससे पौधों स्वस्थ बनते हैं और उत्पादन बढ़ता है ।

  रासायनिक खादों के मुकाबले जैविक खाद सस्ते, टिकाऊ तथा बनाने में आसान होते हैं । इनके प्रयोग से मृदा में ह्यूमस की 

बढ़ोतरी होती है व मृदा की भौतिक दशा में सुधार होता है ।

● पौध वृद्धि के लिए आवश्यक पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटाश तथा काफी मात्रा में गौण पोषक तत्वों की पूर्ति 

जैविक खादों के प्रयोग से ही हो जाती है ।

  कीटों, बीमारियों तथा खरपतवारों का नियंत्रण काफी हद तक फसल चक्र, कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं, प्रतिरोध किस्मों और जैव उत्पादों द्वारा ही कर लिया जाता है ।

● जैविक खादें सड़ने पर कार्बनिक अम्ल देती हैं जो भूमि के अघुलनशील तत्वों को घुलनशील अवस्था में परिवर्तित कर देती हैं, जिससे मदा का पी-एच मान 7 से कम हो जाता है । अतः इससे सूक्ष्म पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है । यह तत्व फसल उत्पादन में आवश्यक है ।

  इन खादों के प्रयोग से पोषक तत्व पौधों को काफी समय तक मिलते हैं । यह खादें अपना अवशिष्ट गुण मृदा में छोड़ती हैं । अतः यह एक फसल में इन खादों के प्रयोग से दूसरी फसल को लाभ मिलता है । इससे मृदा उर्वरता का संतुलन ठीक रहता है ।

 

                                '''जैव उर्वरकों से लाभ'''

 ● 300 रूपये के यूरिया से जितना लाभ मिलता है उतना ही लाभ मात्र 70 रुपये खर्च करके जैब उर्वरकों से प्राप्त किया जा सकता है

 ● इनके प्रयोग से बीजों का अंकुरण शीघ्र एवं जड़ों का विकास अच्छा होता है ।

 ● जैव उर्वरक पौधों की वृद्धि में सहायक पोषक तत्वों, विटामिन्स व हारमोन्स आदि भी प्रदान करते हैं ।

 ● मृदा में लाभदायक जीवाणु की संख्या में वृद्धि एवं भूमि की संरचना में सुधार कर उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं ।

 ● इनके प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों की बचत होती है तथा फसल उत्पादन बढ़ता है साथ ही आर्थिक लाभ भी अधिक मिलता है ।

● जैव उर्वरक उपचारित अन्न, सब्जी, फलों आदि उत्पादों का स्वाद रासायनिक उर्वरक की तुलना में प्राकृतिक रूप से उत्तम होता है

● जैव उर्वरक उपचारित पौधों में रोगों से लड़ने की शक्ति अधिक होती है ।

● सभी जैव उर्वरक पर्यावरण के मित्र हैं । इनके अधिक प्रयोग से किसी प्रकार की हानि नहीं होती है ।

 

                        '''जैव उर्वरकों के प्रयोग में सावधानियां एवं सुझाव'''

 ● कल्चर का प्रयोग पैकेट में छपी प्रयोग की अंतिम तिथि से पूर्व करें ।

 ● कल्चर पैकेटों का भंडारण ठंडी एवं सुरक्षित जगह पर करें तथा उन्हें सूर्य की सीधी रोशनी से बचायें ।

 ● फफूंदनाशक, कीटनाशक तथा रासायनिक उर्वरकों के साथ न तो इसका भंडारण करें और न उनके साथ मिलाकर प्रयोग करें ।

 ● राइजोबियम जैव उर्वरक का प्रयोग पैकेट पर लिखी विशिष्ट फसल में ही करें ।

 ● जैव उर्वरकों के घोल का बीजों पर लेप करते समय उनके छिलकों को नुकसान न हो ।

 ● फफूंदनाशक तथा कीटनाशक दवाओं के प्रयोग के साथ जैव उर्वरकों की दो गुनी मात्रा का प्रयोग करें ।

 

== जैविक खादों के प्रकार ==

 जैविक खादों में फार्म यार्ड खाद, कम्पोस्ट, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नैडप की खाद इसके अलावा मूंगफली, केक, मछली की खाद, महुआ केक इत्यादि प्रमुख रूप से हैं ।

 

== वर्मी कम्पोस्ट ==

वर्मी कम्पोस्ट में महत्वपूर्ण भूमिका केंचुओं की होती है । एक विशेष प्रकार के केंचुए की प्रजाति के द्वारा कार्बनिक / जीवांश पदार्थो को विघटित करके /  सड़ाकर यह खाद तैयार की जाती है । जिसे वर्मी कम्पोस्ट खाद कहते हैं ।

== वर्मी कम्पोस्ट बनाने की विधि ==

छायाकार ऊंचे स्थान पर जमीन की सतह से थोड़ा ऊपर मिट्टी डालकर 2 मी.× 2 मी. ×1 मी. क्रमशः लंबाई, चौड़ाई और गहराई का आवश्यकतानुसार गड्ढा बना लें तथा गड्ढे में सबसे नीचे ईट या पत्थर की 11 सें.मी. परत बनाइए फिर 20 सें.मी. मौरंग या बालू की दूसरी सतह लगाइये । इसके ऊपर 15 सें.मी. मिट्टी की ऊंची तह लगाकर पानी का हलका छिड़काव करके मिट्टी को नम बनायें । इसके बाद सड़ा गोबर डालकर एक कि.ग्रा. प्रति गड्ढे की दर से केंचुए छोड़ दें फिर इसके ऊपर 5 से 10 सें.मी. घरेलू कचरा जैसे- फल व सब्जियों के छिलके, पुआव, भूसा, मक्का व जल कुंभी, पेड़ की पत्तियां आदि को बिछा दें । 20 दिन तक आवश्यकतानुसार पानी का छिड़काव करते रहें । इसके बाद प्रति सप्ताह दो बार 5-10 सें.मी. सड़ने योग्य कूड़े कचरे की तह लगाते रहें, जब तक कि सारा गड्ढा भर न जायें । प्रत्येक दिन पानी का छिड़काव करते रहना चाहिए । 5-7 सप्ताह बाद वर्मी कम्पोस्ट बनकर तैयार हो जाती है । उसके बाद खाद निकाल कर छाया में ढेर लगाकर सुखा दें ।

 

== कम्पोस्ट खाद ==

कम्पोस्ट खाद उस खाद को कहते हैं जिसमें फसलों के अवशेष, घास इत्यादि को जानवर से प्राप्त कचरा व गोबर को एक साथ एक निर्धारित गड्ढे में सड़ाकर बनाई जाती है । इसके लिए 10 फिट × 5  फिट × 4 फिट लंबाई, चौड़ाई व गहराई का गड्ढा बनाकर उसकी चुनाई अंदर से ईट द्वारा कर दी जाती है । इसके बाद फसलों के अवशेष, सड़ा भूसा, पुआल व घास एवं पशुओं से प्राप्त गोबर को एक के बाद एक तल के रूप में लगाकर गड्ढा भर लिया जाता है । गड्ढा भर जाने के बाद मिट्टी से ढक दिया जाता है । इस प्रकार ६ माह में खाद सड़कर तैयार हो जाती है ।

 

== हरी खाद की फसलों की उत्पादन क्षमता ==

हरी खाद की विभिन्न फसलों की उत्पादन क्षमता जलवायु, फसल वृद्धि तथा कृषि क्रियाओं पर निर्भर करती है ।

 

== हरी खाद़ ==

इसमें ढैंचा, सनई, उड़द, मूंग इत्यादि के पौधों को हरी अवस्था में खेत में पलटकर सड़ा दिया जाता है, जिससे मृदा को जैविक खाद प्राप्त होती है । खरीफ मौसम शुरू होने पर खेत में पलेवा करके ढैंचा व सनई की बुआई करनी चाहिए । ध्यान रहे बुआई करते समय यदि खेत की उर्वरा शक्ति कम हो तो रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए तथा फसल जमाव के बाद कम नमी की अवस्था में सिंचाई करते रहना चाहिए । बुआई के लिए ढैंचा 60-70 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा सनई 60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर बीज का प्रयोग करना चाहिए । जब फसल बुआई के 40-50 दिन के अवस्था की हो जाये उस समय पाटा लगाकर फसल को गिराकर मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करके मिट्टी में मिला देना चाहिए । यदि ट्रैक्टर से पलटाई करनी है तो हैरो से जुताई करके सनई, ढैंचे को सड़ाकर मिला चाहिए ।

 

== फर्म यार्ड खाद ==

पालतू जानवरों द्वारा प्राप्त गोबर, मल-मूत्र से तैयार खाद को फार्म यार्ड या घूरे की खाद कहते हैं । कृषकों द्वारा जानवरों से प्राप्त गोबर व मल-मूत्र का ठीक ढंग से न सड़ने के कारण खाद काफी खराब होकर सूख जाती है जिससे तत्वों की मात्रा काफी कम हो जाती है । ऐसी स्थिति में पूर्व में निर्धारित तथा गहरे गड्ढे से प्राप्त गोबर कचरा और मूत्र इत्यादि को एक तह के रूप में गड्ढे में डालना चाहिए । जब एक तह लग जाये तो उसके बाद मिट्टी की हल्की परत से ढक देना चाहिए । इसके बाद दूसरी तह गोबर की डालनी चाहिए । इस प्रकार गड्ढा भर जाने पर हल्की मिट्टी से ढक देना चाहिए । गड्ढे में कम नमी के अवस्था में पानी का छिड़काव अवश्य करना चाहिए, जिससे गोबर सड़ने में आसानी रहे । इस प्रकार यह खाद तैयार हो जाने के बाद फसल बुआई के पूर्व खेत तैयार करते समय फसल के अनुसार मिट्टी में मिला देना चाहिए ।

 

== खली की खाद ==

 महुआ, नीम, मूंगफली, तिल इत्यादि से तेल निकालने के बाद जो अवशेष प्राप्त होता है उसको खली कहते हैं । इसका प्रयोग फसलों में करने से काफी मात्रा में तत्वों के प्राप्त होने के साथ ही साथ मृदा में पनपने वाले हानिकारक कीटाणुओं को नष्ट करते हैं । फसल की आवश्यकतानुसार इनका प्रयोग करना चाहिए ।

 

'''मवेशियों की संख्या के अनुसार गड्ढे का आकार'''

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|'''मवेशियों की संख्या'''  ||'''लंबाई मीटर में''' ||'''चौड़ाई मीटर में''' ||'''गहराई मीटर में'''

|-

|2-5   ||6.5 ||1.0 ||1.0

|-

|6-10  ||8.0 ||1.2 ||1.0

|-

|11-20  ||10.0 ||1.4 || 1.0

|-

|20 से अधिक   ||10.0 ||1.5 ||1.0

|}

 

'''हरी खाद की फसलों की उत्पादन क्षमता'''

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|'''फसल का नाम'''  ||'''हरे पदार्थ की मात्रा टन/हैक्टर''' ||'''नाइट्रोजन का प्रतिशत''' ||'''प्राप्त नाइट्रोजन कि.ग्रा/हैक्टर'''

|-

|सनई   ||20-30 ||0.43 ||86-129

|-

|ढैंचा  ||20-25 ||0.42 ||84-105

|-

|उड़द ||10-12 ||0.41 || 41-49

|-

|मूंग   ||8-10 ||0.48 ||38-39

|-

|ग्वार   ||20-25 ||0.34 ||68-85

|-

|लोबिया  ||15-18 ||0.49 ||74-88

|-

|कुल्थी   ||8-10 ||0.33 ||26-33

|-

|नील   ||8-10 || 0.78 ||62-78

|}

 

== जीवाणु खाद ==

 जीवाणु खाद मृदा में मौजूद लाभकारी सूक्ष्म जीवों का वैज्ञानिक तरीकों से चुनाव कर अनुसंधान प्रयोगशालाओं में तैयारी की जाती है । ये जीवाणु फसलों की पोषक तत्वों की जरूरत को पूरा कर उनकी वृद्धि बढ़ाकर उत्पादन बढ़ाते हैं । साथ ही मृदा में मौजूद फास्फोरस को घुलनशील बनाकर पौधों को उपलब्ध कराते हैं । तो वहीं कुछ मात्रा में गौण तत्वों जैसे-जिंक, तांबा, सल्फर, लोहा, बोरान, कोबाल्ट व मोलिबिडिनम इत्यादि पौधों को प्रदान कराते हैं । पाया गया है कि यह पादप वृद्धि करने वाले हारमोन्स, प्रोटीन, विटामिन एवं अमीनों अम्ल का उत्पादन करते हैं । साथ ही मृदा में पनप रही रोग जनक फफूंदी नष्ट कर लाभकारी जीवाणुओं की संख्या बढ़ाते हैं । यह सूक्ष्म जीवाणु खेती में बचे हुए कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ाकर मृदा में कार्बनिक अपशिष्टों को सड़ाकर मृदा में कार्बनिक यौगिक की उचित मात्रा बनाए रखते हैं । इनके प्रयोग से मृदा की जल धारण शक्ति, बफर शक्ति व उर्वराशक्ति बढ़ती है जिससे फसलोत्पादन बढ़ता है । प्रत्येक मौसम में प्रति फसल लगभग 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर का उत्पादन करते हैं तथा फास्फोरस को घुलनशील बनाने वाले जीवाणु प्रति हैक्टर लगभग 30-40 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति फसल उपलब्ध कराते हैं । इन जीवाणुओं के प्रयोग से लगभग 15-30 प्रतिशत फसलोत्पादन बढ़ता है और उत्पाद की गुणवत्ता बहुत अच्छी रहती है ।

जीवाण खाद में मौजूद जीवाणुओं की शुद्धता एवं उनकी एक निश्चित मात्रा ही उसकी सफलता का माप दंड है । अतः किसानों को सलाह दी जाती है कि वे जीवाणु खाद कृषि अनुसंधान संस्थानों, कृषि विज्ञान केंद्रों, कृषि विश्वविद्यालयों एवं सरकार द्वारा स्थापित कृषि केंद्रों से ही खरीदें । लगातार किये गये प्रयोगों के आधार पर इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि गेहूं की फसल के लिये 10 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद के साथ ऐजोटोबेक्टर व ऐजोस्पिरिलम जीवाणु को मिलाकर प्रयोग करने से लगभग उतना ही उत्पादन होता है जितना 80 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर प्रयोग करने से होता है ।

 

== जैव उर्वरक ==

 ऐसे जीवित सूक्ष्म जीवाणुओं का कोयला, पीट अथवा लिग्नाइट के चूर्ण में मिश्रण है पीट अथवा लिग्नाइट के चूर्ण में मिश्रण है जो कि वायुमंडल में उपस्थित नाइट्रोजन को अवशोषित कर भूमि में स्थापित करते हैं तथा अघुलनशील मृदा फास्फेट तथा अन्य तत्वों को घुलनशील कर पौधों को उपल्बध कराते हैं ।

 

== जैव उर्वरकों के प्रकार ==

'''राइजोबियम कल्चर-''' यह एक नम चारकोल व जीवाणु का मिश्रण है जिसके प्रति एक-एक भाग में 10 करोड़ से अधिक राइजोबियम जीवाणु होते हैं । यह खाद केवल दलहनी फसलों में दिया जाता है । रोइजोबियम खाद में बीज उपचार करने पर यह बीज के साथ चिपक जाता है । बीज अंकुरण पर यह जीवाणु जड़ की मूल रोम द्वारा पौधों की जड़ों में प्रवेश कर जड़ों पर ग्रंथियों का निर्माण करते हैं । पौधों की जड़ों से अधिक ग्रंथियों के होने पर फसल की पैदावार बढ़ती है । इसके प्रयोग से 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की बचत होती है तथा फसल उपज में 10-15 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी पायी गयी है । अलग-अलग दलहनी फसल के लिए अलग-अलग राइजोबियम कल्चर बाजार में उपलब्ध होते हैं ।

'''एजेटोबैक्टर-''' यह जीवाणु पौधों की जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप उत्पाद है, जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके पौधों को उपलब्ध कराते हैं । इसके एक ग्राम में लगभग 10 करोड़ जीवाणु होते हैं । यह जीवाणु खाद दलहनी फसल को छोड़कर सभी फसलों में उपयोग की जा सकती है । इसके प्रयोग से 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन की बचत होती है तथा 10-15 प्रतिशत फसल उत्पादन में वृद्धि होती है ।

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'''जैविक व हरी खादों में औसत पोषक तत्व प्रतिशत'''

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|'''जैविक खाद'''  || '''पोषक तत्व (प्रतिशत)'''

|-

|  ||'''नाइट्रोजन''' ||'''फास्फोरस''' ||'''पोटाश'''

|-

|फार्मयार्ड खाद  ||0.80 ||0.41 ||0.74

|-

|कम्पोस्ट खाद   ||1.24 ||1.92 ||1.07

|-

|वर्मी कम्पोस्ट  ||1.60 ||2.20 ||0.67

|-

|धान पुआल की खाद  ||1.59 ||1.34 ||1.37

|-

|गेहूं भूसा की खाद  ||2.90 ||2.05 ||0.90

|-

|प्रेसमड   ||2.73 ||1.81 ||1.31

|-

|जलकुंभी  ||2.0 ||1.0 ||2.30

|-

|मुर्गी खाद  ||2.87 ||2.93 ||2.35

|-

|'''हरी खाद'''  || || || || || ||

|-

|सनई   ||0.43 ||0.12 ||0.5

|-

|ढैंचा  ||0.5 ||0.10 ||0.50

|-

|बिनौला खली  ||3.9 ||1.8 ||1.6

|-

|महुवा केक  ||2.5 ||0.8 ||1.8

|-

|नीम केक  ||5.2 ||1.0 ||1.4

|-

|मूंगफली की खली  ||7.4 ||1.5 ||1.3

|-

|साफ्लावर केक  ||7.9 ||2.2 ||1.9

|-

|तिल केक  ||6.2  || 2.0  ||2.2

|}

 

 '''जैविक व हरी खादों में औसत पोषक तत्व प्रतिशत'''

 '''जैविक खाद'''                    '''पोषक तत्व (प्रतिशत)'''  

                         '''नाइट्रोजन'''              '''फास्फोरस'''              '''पोटाश'''

 फार्मयार्ड खाद                   0.80               0.41               0.74

 कम्पोस्ट खाद                   1.24               1.92               1.07

 वर्मी कम्पोस्ट                   1.60               2.20               0.67

 धान पुआल की खाद              1.59               1.34               1.37

 गेहूं भूसा की खाद                2.90               2.05               0.90

 प्रेसमड                        2.73               1.81               1.31

 जलकुंभी                       2.0                1.0                2.30

 मुर्गी खाद                      2.87               2.93               2.35

 '''हरी खाद'''

 सनई                          0.43               0.12               0.5

 ढैंचा                           0.5                0.10               0.50

 बिनौला खली                    3.9                1.8                1.6

 महुवा केक                      2.5                0.8                1.8

 नीम केक                       5.2                1.0                1.4

 मूंगफली की खली                 7.4                1.5                1.3

 साफ्लावर केक                   7.9                2.2                1.9

 तिल केक                       6.2                2.0                2.2

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 '''जीवाणु'''                         '''फसल जिसमें प्रयोग होते हैं'''        

 रोइजोबियम (सहजीवी)            सभी दलहनी फसलों के लिए लेकिन प्रत्येक फसल के लिए अलग-अलग मात्रा : एक पैकेट

                               (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीज उपचारित करने के लिए ।

 एजोटोबेक्टर (स्वतंत्र जीवी)         गेहूं, बाजरा, जौ, कपास, आलू, गोभी, प्याज, टमाटर, बैंगन, भिंडी, सरसों आदि ।

                                मात्रा : एक पैकेट (200 ग्राम) प्रति एकड़ उपचारित करने के लिए । 

 एजोस्पिरिलम (सहबंधी)           अनाज वाली फसलें, ज्वार, बाजरा, गेहूं, जौ, मक्का, गन्ना आदि । मात्रा : एक पैकेट

                                (200 ग्राम) प्रति एकड़ उपचारित करने के लिए । 

 नील हरित शैवाल                  धान की फसल । मात्रा : 10 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पानी भरे खेत में छिड़काव के लिए । 

 माइकोराइजा                      पौधशाला में तैयार होने वाली, बागवानी, फूल वाली फसलों के साथ गन्ना तथा अन्य सभी

                                फसलों के लिए । मात्रा : 10-12 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर ।

 माइब्रफोपफास                     सभी फसलों के लिए । मात्रा :  एक पैकेट (200 ग्राम) प्रति एकड़ बीज उपचारित करने  

                                के लिए । 

'''नील हरित शैवाल-''' ये शैवाल मिट्टी के सदृश्य सूखी पपड़ी के टुकड़ों के रूप में होते हैं । यह धान की फसल के लिए जिनमें कि पानी भरा रहता है लाभकारी है । ये सूक्ष्म जीवाणु 20-30 कि.ग्रा. नाइट्रोजन (पोषक तत्वों के रूप में) प्रति हैक्टर उपलब्ध कराने में तथा 10-15 प्रतिशत फसल की पैदावार बढ़ाने में सक्षम होते हैं । इनके प्रयोग से लगभग 30 प्रतिशत तक रसायनिक उर्वरकों की बचत की जा सकती है ।

 

'''फासफेडिका कल्चर-''' फासफेडिका जीवाणु खाद, स्वतंत्र जीवाणुओं का एक नम चूर्ण रूप में उत्पाद है । जब हम खेत में उपरोक्त कल्चर का प्रयोग करते हैं तो जमीन में पड़े हुए अघुलनशील फास्फोरस जीवाणुओं द्वारा घुलनशील अवस्था में बदल दिया जाता है तथा इसका प्रयोग सभी फसलों में किया जाता है । फासफेडिका कल्चर के प्रयोग से फसलों में 10-12 प्रतिशत उत्पादन में वृद्धि पायी गयी है । इसके प्रयोग करने से 20-25 कि.ग्रा. फास्फोरस प्रति है कि बचत संभव है । जड़ों का विकास अधिक होता है जिससे पौधा स्वस्थ होता है ।

 

'''एजोस्पाइरिलम कल्चर-''' यह जीवाणु खाद मृदा में पौधों के जड़ क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से रहने वाले जीवाणुओं का एक नमचूर्ण उत्पाद है । जो वायुमंडल की नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर पौधों को उपलब्ध कराते हैं । यह जीवाण खाद खरीफ के मौसम में धान, मोटे अनाज तथा गन्ने की फसल के लिए विशेष उपयोगी है । इसके प्रयोग से फसलोत्पादन में 10-12 प्रतिशत वृद्धि होती है तथा 15-20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर नाइट्रोजन की बचत होती है ।

 '''नोट-''' इस प्रकार किसान भाई जैविक खादों व उर्वरकों का प्रयोग दलहनी, तलहनी, खाद्यान्न एवं सब्जी फसलों में करके 

 उत्पादन लागत को कम करते हुए गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेकर अपनी आमदनी प्रति इकाई क्षेत्रफल बढ़ा सकते हैं तथा पर्यावरण को भी

 सुरक्षित रख सकते हैं ।

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